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शिवरात्रि को इलाहाबाद की यादें

शिवरात्रि आज शिवरात्रि है और याद फिर से इलाहाबाद (अब प्रयागराज) की आ गयी। हॉस्टल में वैसे तो सभी पर्व धूम-धाम से मनाये जाते थे लेकिन शिवरात्रि की बात ही कुछ और थी। हॉस्टल के जमाने के या यों कहें कि विद्यार्थी जीवन के दौरान लगभग सभी विद्यार्थियों का हाल भगवान शिव के गणों जैसा ही होता है जो हर हाल में देवी सरस्वती को प्रसन्न करने के प्रयास करते हुए जीवन में आगे चलकर देवी दुर्गा-शक्ति और देवी लक्ष्मी की कृपा की आकांक्षा रखते हैं। तो इलाहाबाद विश्वविद्यालय के हम लोगों के सर गंगानाथ झा हॉस्टल में शिवरात्रि के दिन एक अलग ही उत्साह और धूम का माहौल होता था और हो भी क्यों ना आखिर त्योहार शिव जी के विवाह का तो शिव भक्त और/या शिव जी के गण क्यों न प्रसन्न हों? हॉस्टल के कॉमन रूम में शाम को शिव जी की पूजा होती थी तथा सभी छात्रावासी गण इसमें बढ़-चढ़ कर उत्साह से भाग लेते थे। पूजा के बाद  फिर प्रसाद चढ़ाया जाता था। प्रसाद में गुलाब जामुन विशेष उल्लेखनीय होते थे और फिर शिव बूटी जो लेना चाहें उनके लिए उपलब्ध होती थी। उस पूरी शाम हॉस्टल में खूब हर्षोल्लास और धूम धाम का माहौल रहता था और शिव-बूटी अर्थात भांग

रामसेतु : मिथक नहीं सत्य

रामसेतु भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक-धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल है जिसका हमारी संस्कृति में अत्यधिक महत्व माना गया है। रामसेतु, भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। रामसेतु भारतीय आमजन में उस संरचना को कहा गया है जो भारतीय संस्कृति,पौराणिक आख्यान,भारतीय साहित्य और आम जन के विश्वास के अनुसार भगवान राम द्वारा रावण को पराजित करने हेतु लंका जाने के लिए भारत और लंका के बीच के समुद्र में बनाया गया था। रामर पालम या रामसेतु तमिलनाडु, भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य स्थित था और भौगोलिक प्रमाणों से यह पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू मार्ग से आपस में जोड़ता था। रामसेतु के विषय में विविध  किस्म के आख्यान हैं, विश्वास हैं और मान्यताएं भी हैं। एक विचार यह कहता है कि यह संरचना प्राकृतिक है न कि मानव निर्मित तो एक  विचार और विश्वास इसको रामायण काल और भगवान राम से जोड़ता है। सबसे पहले चर्चा करते हैं  हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक साहित्य में इस सेतु की चर्चा

हनुमान जी,चामुंडा देवी और हम लोगों की कुलदेवी महाविद्या जी के दर्शन

आज यानी 8 जुलाई 2023,शनिवार का दिन अपने परिवार के इष्टदेव हनुमान जी,चामुंडा देवी और हम लोगों की कुलदेवी महाविद्या जी के दर्शन में व्यतीत हुआ। चूंकि घर पर सारे बच्चे मौजूद थे तो आज ऐसा कार्यक्रम बन गया।सबसे पहले फिरोजाबाद स्थित बड़े हनुमान जी के मंदिर गए।वहाँ हम सभी परिवारीजन ने दर्शन किये।मंदिर में ज्योतिर्विद पंडित राजीव लोचन मिश्र का आशीर्वाद भी सबको प्राप्त हुआ। पुत्रवधू उपासना को वहाँ लगा वो पत्थर भी दिखाया जो हम लोगों के परिवार के भी हनुमान जी के मंदिर से पुराने जुड़ाव को बताता है।हनुमान जी का फिरोजाबाद स्थित यह सिद्ध स्थल  मंदिर अत्यंत प्राचीन है और कहते हैं कि  इसका एक बार निर्माण/जीर्णोद्धार मराठा राज्य के दौरान तत्कालीन महाराजा सिंधिया ने भी कराया था।एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर की स्थापना मराठा शासन के दौरान बाजीराव पेशवा द्वितीय ने की थी। फिरोजाबाद के इतिहास और संस्कृति में इस मंदिर का भिबेक अलग स्थान रहा है।इस मंदिर के विषय में विस्तार से अलग से फिर कभी लिखूंगा। इसके बाद हम लोग यानी मेरी पत्नी रचना,पुत्र अर्पित,पुत्री ऐश्वर्या, पुत्रवधू उपासना और भतीजा अभीष्ट मथुरा स्थित चाम

भारत में काँच उद्योग का इतिहास-विशेष संदर्भ फिरोजाबाद भाग-1

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आजकल भारत में काँच उद्योग,विशेष सन्दर्भ फिरोजाबाद विषय पर काम कर रहा हूँ।उसी से कुछ अंश:- भारत में काँच उद्योग का इतिहास- विशेष संदर्भ फिरोजाबाद ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने अपने जीवन में कहीं न कहीं,किसी न किसी रूप में ग्लास या काँच को न देखा हो।काँच का उत्पाद जब सजावटी होता है तो मनुष्य को आकर्षित करता है,जब औषधीय काम में प्रयुक्त हो रहा हो तो उम्मीद और भय दोनों जगाता है,जब दैनिक उपयोग की वस्तु हो तो खरीदने की इच्छा जगाता है और जब इसका उपयोग विज्ञान,उद्योग या किसी ऐसे क्षेत्र में होता दिखे जिसके विषय में हम नहीं जानते तो यह आश्चर्य, उत्सुकता और जिज्ञासा के मिले-जुले भाव उत्पन्न करता है। वैसे तो जब से यह पृथ्वी बनी है तभी से काँच भी यहाँ बन गया होगा क्योंकि जब ज्वालामुखी फट रहे होंगे तो उसकी गर्मी से लावा तो निकलता ही है पर कई स्थानों पर रेत ने पिघल कर काँच का रूप ले लिया होगा।मानव सभ्यता के विकास के क्रम में कहीं न कहीं,कभी न कभी मनुष्य का ध्यान उस काँच पर गया होगा और वो उसकी ओर आकृष्ट हुआ होगा।मानव स्वभाव है कि जब वह किसी वस्तु की ओर आकर्षित होता है तो उसमें उस वस्तु के प्रति जिज

फिर कुछ पुराने कागज मिले, बाबा के इतिहास के पन्नों से

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आज फिर कुछ पुराने कागज मिले, बाबा के इतिहास के पन्नों से इनमें इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की डिग्री, रुड़की का सर्टिफिकेट, फिरोजाबाद के स्कूल का सन 1899 के ऐडमिशन का ट्रांसफर सर्टिफिकेट, पूज्यनीय स्व0 डॉक्टर  बाबूराम सक्सेना का बाबा को पत्र,  म्यो कॉलेज अजमेर का सर्टिफिकेट आदि हैं।जिन लोगों की इतिहास में रुचि है या इलाहाबाद से सम्बन्ध है उम्मीद है उनको ये पोस्ट अच्छी लगेगी।

इतिहास के पन्नों से:- कानपुर के 1925 का कांग्रेस अधिवेशन का जिक्र बाबा की डायरी से

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इतिहास के पन्नों से:- कल कुछ पुराने कागज देख रहा था।उनमें हमारे बाबा स्व0 सुशील चंद्र चतुर्वेदी जी की 1925 की डायरी में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन,जिसमें उन्होंने भाग लिया था उसकी चर्चा देखी।बाबा लिखते हैं अद्भुत नजारा था,मेले जैसा आयोजन था,अलग-अलग न जाने कितने पंडाल लगे हुए थे।गांधी जी, लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ0मुंजी, स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू, केलकर जी आदि लोग भी उन पंडालों में मौजूद थे।उस दिन गांधी जी का मौन व्रत का दिन था। पंडालों में बिछे गद्दे 1916 से फर्क थे।बाबा लिखते हैं कि उस आयोजन में विभिन्न बाज़ार भी लगे हुए थे।न जाने कितने यानी असंख्य लोग थे। यह वृहद आयोजन और इतनी बड़ी संख्या में लोगों की सहभागिता बताती थी कि कांग्रेस आंदोलन और विचार अब बहुत बड़ा रूप ले चुका था।बाबा आदि लोग कानपुर की प्रताप प्रेस में रुके थे।बाबा आदि को स्टेशन पर रिसीव करने दादाजी पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी आये थे जो गांधी जी और इस आयोजन से जुड़े सक्रिय और महत्वपूर्ण लोगों में थे।

गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार;बधाई

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वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर को बधाई।  मेरे जैसे न जाने कितने लोग बचपन से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कल्याण, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, श्री राम चरितमानस और न जाने कितने  ऐसे ग्रन्थ पढ़ते हुए बड़े हुए हैं।कल्याण में छपी "पढ़ो,समझो और करो" के किस्सों से न जाने कितने लोगों को अच्छे कर्म और परोपकार करने की प्रेरणा मिली होगी।मुझको याद है कि आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व बचपन में मेरे बाबा स्व0 सुशील चंद्र चतुर्वेदी जी हमको इन कथानकों को पढ़ने को प्रेरित करते थे। 1923 में स्थापित, गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है।गीता प्रेस ने हमारे प्राचीन सामाजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथों को शुध्द रूप में,हिंदी अनुवाद के साथ, उचित दामों में जन साधारण को उपलब्ध करा कर दशकों से हमारी प्राचीन संस्कृति से न जाने कितनी नयी पीढ़ियों को परिचित कराने का काम किया है।