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सीवर सफाई करने वाले मजदूर और समाज की संवेदनशीलता

आज कल समाचार पत्रों में एक तरफ छोटी सी खबर देखने को मिल जाती है कि मेन होल में घुस कर सीवर की सफाई करते में सफाई कर्मचारी की मौत... असलियत ये है कि यह समाचार जितना छोटा छपता है उसके विपरीत मुद्दा यह बहुत ही बड़ा है. देश को स्वतंत्र हुए सात दशक बीत चुके और हालात यह हैं कि अकेले पिछले  दो दशकों में लगभग दो हजार सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर को साफ करते में हो गयी.बात सिर्फ अफसोस की ही नहीं है अपितु बहुत चिंता की भी है कि एक तरफ तो हम चांद और मंगल के लिए अंतरिक्ष यान भेज रहे हैं दूसरी ओर हमारे सफाई कर्मियों के लिए हमारे पास उनको सफाई करते समय जीवन रक्षक उपकरण उपलब्ध कराने की तकनीकी भी नहीं है या यह मुद्दा प्राथमिकता नहीं रखता.... यह मुद्दा सिर्फ मानवीय संवेदना का ही नहीं है,सिर्फ मृतक के छोटे बच्चों,पत्नी और बूढ़े माँ-बाप के बुढापे के सहारे के चले जाने का नहीं है बल्कि यह मुद्दा एक राष्ट्र की प्राथमिकताओं का भी है.बात यह सोचने की है कि जब सबको मालूम है कि सीवर लाइन में गन्दगी जाती है,उससे जहरीली गैस बनती है जो इन मेनहोल से बिना समुचित और उपयुक्त साधनों के उतरने वालों के लिए जहरीले गैस चैम