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Showing posts from 2022

महाराज जी-1

सुबह-सुबह ठाकुर जी को स्नान करा के अपनी दैनिक पूजा-अर्चना करके महाराज जी अपना सुबह का कलेवा कर रहे थे;अमरूद, सेब,कांसे के बेले में गर्म दूध और साथ में महीन छिली सी कतरनों जैसा गुड़।जाड़ों के दिन में महाराज जी सुबह यही कलेवा करते थे बस फल बदलते रहते थे।सुबह के इस कार्यक्रम को निबटा कर अब महाराज जी जीना उतर के अपने कमरे में आकर अपने तख्त पर बैठ चुके थे अपनी गम्भीर लेकिन अति सौम्य चिंतन मुद्रा में। अपनी उम्र के आठवें दशक के आखिर में पहुँच चुके सामान्य से छोटे कद के महाराज जी गौर वर्ण, गंजे हो चले सर पर उन्नत ललाट,सफेद मूँछें,एक देवता तुल्य तेजयुक्त चेहरा, सादा खद्दर की धोती और सर्दी के दिन होने पर हाथ का बना नेवी ब्ल्यू स्वेटर इस वेशभूषा में वो एक योगी, दिव्यात्मा और महात्मा ही लगते थे और कोई कह नहीं सकता था कि इस योगी व्यक्तित्व के पीछे एक सफल उद्योगपति,अति विद्वान शालीन व्यक्तित्व था जिसने अपने बूते पर 20वीं सदी के दूसरे दशक से अपने साम्राज्य की स्थापना की सफल शुरुआत की थी और जो अब व्यवहारिक रूप से एक घरेलू सन्यास आश्रम वैराग्य अवस्थित जीवन जी रहे थे।इन्हीं महाराज जी को शहर के मुहल्ले वाल

सिद्धांत के लिए मुगल कारवां से लोहा लेने वाले हमारे पूर्वज चौबे दुर्गादास फिरोजाबाद

पिछले कुछ समय से मैं यात्रा वृतान्त, समाज, संस्कृति और इतिहास सम्बंधित लेखन के अलावा श्री माथुर चतुर्वेदी ब्राह्मण समुदाय से संबंधित इतिहास, संस्कृति और विरासत पर भी रिसर्च, लेखन, यूट्यूब सीरीज़ बनाना (चतुर्वेदी हैरीटेज नाम से) आदि काम भी कर रहा हूँ।इसी श्रृंखला में फिरोजाबाद के श्री माथुर चतुर्वेदी पुरोहित वंश के यानी कि अपने परिवार के इतिहास को भी लिपिबद्ध करने का प्रयास चल रहा है। इस प्रक्रिया में बहुत सी रोचक जानकारी मिली है और मिल रही है जैसे राजस्थान के चतुर्वेदी बौहरे बसंत राय ने मुगल सम्राट शाहजहाँ को पैसा उधार दिया था जब वो बादशाह नहीं बना था या मथुरा के चतुर्वेदी पांडे भाइयों ने कैसे मथुरा के काजी को मारा और काजीमार पांडे कहलाये आदि।लेकिन आज आपके सामने किस्सा प्रस्तुत कर रहा हूँ अपने पूर्वज फिरोजाबाद के चतुर्वेदी पुरोहित वंश के चौबे दुर्गा प्रसासाद का जिन्होंने मुगल सम्राट के कारवां से महसूल वसूला था। किस्सा कुछ यूँ है कि:- हमारे पूर्वज: स्व0 दुर्गाप्रसाद चतुर्वेदी समय 16-17वीं शताब्दी  फ़िरोज़ाबाद में हम लोगों के परिवार का इतिहास बहुत पुराना है और हमारे परिवार यानी कि सौश्रवस ग

एंटरटेनमेंट की दुनिया में इलाहाबाद-प्रयागराज से सम्बंधित एक और नौजवान की दस्तक: भव धूलिया

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एंटरटेनमेंट की दुनिया में इलाहाबाद-प्रयागराज से सम्बंधित एक और नौजवान की दस्तक:भव धूलिया पिछले कई सालों से मैं यह सोचता हूँ कि  इलाहाबाद या प्रयागराज शहर की खासियत वहाँ की किसी एक चीज में निहित है या फिर वहाँ का माहौल ही ऐसा है कि अगर कोई लगन से मेहनत से किसी काम को करना चाहता है तो इलाहाबाद उसको एक अलग रास्ता दिखाता है और सफलता भी उसके पीछे चलने लगती है। आज मैं आपसे चर्चा करना चाहूंगा इसी इलाहाबाद से जुड़े एक ऐसे नौजवान जिसने इलाहाबाद की विशिष्ट परंपरा का पालन करते हुए एंटरटेनमेंट की दुनिया में ओटीटी प्लेटफॉर्म के माध्यम से अपनी एक सशक्त पहचान प्रस्तुत की है। मैं बात कर रहा हूँ भव धूलिया की। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में रजिस्ट्रार हुआ करते थे श्री  के पी मोहिले साहब।हमारे परिवार के भी उनसे बहुत घनिष्ठ पुराने संबंध रहे हैं। स्व0 के पी मोहिले साहब के पुत्र स्वर्गीय अशोक मोहिले जी हाई कोर्ट इलाहाबाद में वकील थे। अशोक मोहिले साहब की पुत्री जौली मोहिले के पुत्र हैं भव धूलिया।भव के बाबा जस्टिस के0सी0 धूलिया इलाहाबाद हाई कोर्ट में जज रहे, भव  के पिताजी कैप्टन हिमांशु धूलिया भारतीय नौसेना में अ

कोविड महामारी के मृतकों को श्रद्धांजलि और तर्पण इस पितृ-पक्ष में

कोविड महामारी के मृतकों को श्रद्धांजलि और तर्पण इस  पितृ-पक्ष में "इस महामारी ने अधिकांश घरों से आहुति ली है तो ये हमारे घर से आहुति थी" ये लाइनें मेरे बाबा स्व0सुशील चंद्र चतुर्वेदी (1893-1980) की डायरी के सन 1918 के पन्ने से है जो उन्होंने अपने चाचा के लगभग 12-13 वर्ष के पुत्र राजेन्द्र जी के इन्फ़्लुएन्ज़ा से काल-कवलित होने पर लिखी है और जो लगभग एक शताब्दी पूर्व की उस महामारी की विभीषिका को बताती है।इस महामारी इन्फ़्लुएन्ज़ा/स्पेनिश फ्लू महामारी में लगभग  1 करोड़ 70 लाख या 1 करोड़ 80 लाख लोगों की केवल भारत में ही जान गई थी जो विश्व में सर्वाधिक ही थी।इन 18 मिलियन मौतों में लगभग 13 मिलियन तत्कालीन ब्रिटिश भारत वाले हिस्से में हुयी थीं।कहते हैं कि भारत की लगभग 5%जनसंख्या इस महामारी का शिकार हो गयी थी। 1911-1921 का दशक ही एक ऐसा दशक था जिसके दौरान भारत की जनसंख्या में गिरावट दर्ज हुई थी। महात्मा गांधी जी भी उस दौरान इस वायरस से पीड़ित हुए थे।महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने "कुल्ली भाट" में लिखा है कि,"मैं दालमऊ में गंगा के तट पर खड़ा था। जहाँ तक नज़र जाती थी गंगा

मेरी अगस्त 2022 की इटावा की तीर्थ यात्रा

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मेरी इटावा की तीर्थ यात्रा 28 अगस्त 2022 अभी कुछ दिन पहले 28 अगस्त को मेरा इटावा जाना हुआ।मेरे पुत्र अर्पित की और उपासना की शादी के बाद हम सबका मन था कि एक बार सबके साथ इटावा हो आएं किंतु कोरोना की महामारी और फिर मम्मी और पापा दोनों के न रहने से एक लंबे समय तक न जाना सम्भव हुआ और ना ही उस समय मन था। इस बार की इटावा यात्रा में मैं,मेरी पत्नी रचना,छोटे भाई अभिनव (गुड्डू) की पत्नी नीता,मेरे पुत्र अर्पित,अर्पित की पत्नी उपासना और मेरी पुत्री ऐश्वर्या गए थे।अब जब सबके साथ इटावा गए तो भले ही अपने होश संभालने के समय से ही इटावा की यादें भी हैं किंतु इस बार की इटावा यात्रा का अनुभव अलग ही था। इस इटावा यात्रा की चर्चा करूँ उसके पहले ये बताना उचित होगा कि इटावा से हमारे परिवार के पुश्तों से रिश्ते रहे हैं और हमारी लगभग 6 पीढ़ियों या सन 1850-1860 ईस्वी वाले दशक से तो जो रिश्ते रहे वो मेरी जानकारी में हैं। सबसे पहले एक संक्षिप्त विवरण इन रिश्तों का:- 1.हमारे बाबा स्व0 सुशील चन्द्र चतुर्वेदी जी के बाबा स्व0 मथुरा प्रसाद जी की बहन मुना का विवाह इटावा के सुंदर लाल जी चतुर्वेदी

सिंदबाद ट्रैवल्स-35 जर्मनी-4 फ्रैंकफर्ट-2 Sindbad Travels-35 Germany-4 Frankfurt-2

सिंदबाद ट्रैवल्स-35 जर्मनी-4  फ्रैंकफर्ट-2 Sindbad Travels-35 Germany-4 Frankfurt-2 Frankfurt Coordinates  50.1109° N, 8.6821° E कॉस्ट्यूम ज्वेलरी के उस विशाल शोरूम के मालिक सरदार जी से,जो लगभग पचास के आस पास की उम्र के रहे होंगे, मैंने नमस्कार की जिसका उन्होंने बड़ी ही बेरुखी से जवाब दिया और ऐसा जताया कि उनका मुझसे बात करने में कोई इंटरेस्ट नहीं था और अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश की मगर मैं भी तो आखिर दुबई से घाट-घाट का पानी पीते हुए यहाँ तक पहुँचा था तो मैं भी कहाँ हार मानने वाला था।मैंने सरदार जी की अनिच्छा और बेरुखी के बावजूद अपने काम के और प्रोडक्ट्स के विषय में बताते हुए अपने आने का उद्देश्य बताया।सरदार जी की टोन अब बेरुखी से आगे बढ़ते हुए शालीनता की सीमा के आखरी पड़ाव की तरफ अग्रसर सी होती दिख रही थी जबकि मैं अपने देश का वास्ता देते हुए पूरी शालीनता से अपने प्रयास में रत था और हॉं ये सारी बातचीत खड़े ही खड़े हो रही थी,सरदार जी ने पानी पूछना तो दूर मुझको बैठने की कहने की जहमत भी नहीं उठाई थी।काफी इसरार और कोशिश के बाद भी सरदार जी बिल्कुल पसीजे नहीं और अपनी बेरुखी पर ही अड़े रहे और आखिर म

सिंदबाद ट्रैवल्स-34 जर्मनी हाइडलबर्ग और फ्रैंकफर्ट Sinbad Travels-34 Heidelberg and Frankfurt

सिंदबाद ट्रैवल्स-34 जर्मनी-3  हाइडलबर्ग-3 साथ में फ्रैंकफर्ट-1 Sindbad Travels-34 Germany-3 Heidelberg-2 with Frankfurt-1 Frankfurt Coordinates  50.1109° N, 8.6821° E अगले दिन सुबह उठ कर तैयार होते में ही विकास बाफना जी और उनके साथी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि फ्रैंकफर्ट में बुक फेयर लगा हुआ है और वो दोनों उसमें जा रहे हैं।उन्होंने मुझसे भी फेयर में चलने को कहा किंतु मुझको इस विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतएव मैंने कहा कि भाई मैं एक्सपोर्ट करने आया हूँ न कि मेले घूमने;बाद में जाकर समझ में आया कि उस समय की मेरी यह सोच और समझ दरअसल मेरी कूपमंडूकता की ही द्योतक थी और कुछ नहीं।खैर… हम लोग हाइडलबर्ग स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर फ्रैंकफर्ट के लिए चले।यूरोप की ट्रेनों और खास तौर पर जर्मनी की ICE Trains के विषय में आगे बताऊंगा अभी बस इतना कि यूरोप और खास तौर से जर्मनी की ट्रेनों में चलना एक शानदार अनुभव होता है।हाइडलबर्ग से फ्रैंकफर्ट का लगभग सवा घंटे का सफर रास्ते के दोनों ओर के मनभावन दृश्यों को मंत्रमुग्ध होकर देखते हुए ही बीता।फ्रैंकफर्ट मेन स्टेशन से बाहर निकल कर लगा कि एक अन्य किस्म के शहर म

सिंदबाद ट्रैवल्स-33 जर्मनी-2 हाइडलबर्ग-2

सिंदबाद ट्रैवल्स-33 जर्मनी-2;हाइडलबर्ग 2 Sindbad Travels-33 Germany-;Heidelberg 2 हाइडलबर्ग के इस्कॉन के गैस्टहाउस में मेरा सामान लेकर जो जनाब सीढ़ी चढ़ कर आगे चले गए थे उनके पीछे-पीछे मैं भी उस हॉल नुमा कमरे में पहुँच गया।कमरे में एक तरफ उन्होंने मेरा सामान रख दिया,वो भारतीय नहीं थे, मैंने उनको धन्यवाद दिया फिर उन्होंने बताया कि इस कमरे में दो लोग और हैं।कमरे में दो सिंगल पलंग अलग-अलग दीवारों से सटे आमने सामने पड़े थे और ज़मीन पर मेरे लिए एक मोटा डनलप का गद्दा उन लोगों ने डाला था जिस पर अगले कुछ दिन तक मेरा सोना होना था और साथ में ओढ़ने को कम्बल भी था वैसे सारी बिल्डिंग सेंट्रली हीटेड थी।जैसा मैं पहले बता भी चुका हूँ कि अपनी विदेश यात्रा शुरू करने के पहले मैंने यूथ हॉस्टल और इस्कॉन की लाइफ मेम्बरशिप ली थी।इस्कॉन की मेम्बरशिप में एक बार में 8 दिन तक उनके दुनिया भर के किसी भी गैस्ट हाउस में रुका जा सकता था और खाना भी उसमें निःशुल्क मिलता था, वो भी भारतीय, जो उस समय में विदेश में एक बड़ी नेमत थी।इस्कॉन के दुनिया के अनेकों शहरों में रेस्टॉरेंट्स हैं और कई शहरों में रुकने की व्यवस्था भी है।ठहरने

सिंदबाद ट्रैवल्स-32 जर्मनी(1) हाइडलबर्ग Sindbad Travels-32 Germany(1) Heidelberg

सिंदबाद ट्रैवल्स-32 Sindabad Travels-32 जर्मनी (1):-हाइडलबर्ग Germany (1):-Heidelberg Coordinates:- 49.3988°N,8.6724°E Time zone:-Central European Time Zone आज  26 अगस्त 2022 को एक बहुत लंबे अंतराल के बाद जब मैं अपने विदेश यात्रा वृतांत के अगले भाग को यानी 32वें भाग को लिखने बैठा हूँ तो बहुत अच्छा लग रहा है।पिछला भाग-31 जो मेरी स्विट्ज़रलैंड यात्रा का आखिरी भाग था मैंने 26 जुलाई 2019 को पोस्ट किया था फिर इस बीच ऐसे बहुत से व्यक्तिगत कारण रहे कि इस क्रम में 3 वर्ष का व्यवधान आ गया।अब आज से इसको फिर से शुरू कर रहा हूँ और प्रयास होगा कि इसको पहले की भाँति प्रस्तुत करता रहूँ। तो अब बात 14 अक्टूबर 1991 से शुरू करता हूँ;14 अक्टूबर मेरा जन्मदिन भी होता है तो सन 1991 के अपने इस जन्मदिन 14 अक्टूबर को अब मैं चल पड़ा था अपनी निर्यातक बनने की यात्रा के अगले पड़ाव पर यानी कि जिनेवा से जर्मनी के फ्रैंकफर्ट की ओर।मैं जब जिनेवा से जहाज में बैठा तो अतुल भैया और कनक भाभी के स्नेह तथा आवभगत की मधुर यादें हृदय में समेट कर ले जा रहा था और स्विट्जरलैंड के मनोरम दृश्यों की झांकी भी।जहाज हवा में उड़ कर बादलों के

मेरी इलाहाबाद-प्रयागराज यात्रा; मई 2022 ---(3)...

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मेरी इलाहाबाद-प्रयागराज यात्रा; मई 2022  ---(3)... अपनी इस बार के इलाहाबाद यात्रा की सबसे बड़ी विशेषता थी कि इस यात्रा का कोई फिक्स्ड एजेंडा नहीं था;मुख्य उद्देश्य था पत्नी,बेटा,बेटी और पुत्रवधू के साथ इलाहाबाद में अपनी बड़ी मौसी के साथ समय बिताना,छोटी मौसी और अन्य मित्रों परिचितों आदि से मिलना और अपने परिवारीजनों का उस इलाहाबाद से परिचय कराना जिस शहर से हमारा और हमारे परिवार का लगभग डेढ़ शताब्दी से अनवरत,निरन्तर और अटूट रिश्ता रहा है। अपने परिवार और इलाहाबाद का रिश्ता तो मैं बताता ही रहा हूँ पर आज थोड़ी सी अपनी बात,संक्षेप में… 1971 में मेरे मम्मी पापा ने मुझको इलाहाबाद में मेरे मौसाजी और बड़ी मौसी के पास छोड़ा कि वो इलाहाबाद में किसी अच्छे बोर्डिंग स्कूल में मेरा दाखिला करवा दें।मौसाजी की एक शिष्या रही थीं कान्ता भार्गव जी वो सर्किट हाउस के पास एक स्कूल था, 8-हेस्टिंग्स रोड पर,टण्डन जी के बंगले में जिसका नाम था भारत भारती (सावास) विद्यालय, उसकी हॉस्टल की वार्डन और एक प्रकार से स्कूल की सर्वे-सर्वा थीं।मौसाजी ने उस स्कूल में मेरा दाखिला कक्षा 6 में करवा दिया और मैं 8वीं क्लास तक वहाँ पढ़ा।कक

मध्य प्रदेश रीवा का जानकी पार्क और हमारे परिवार से उसका सम्बन्ध

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मध्य प्रदेश रीवा का जानकी पार्क और हमारे परिवार से उसका सम्बन्ध हमारे बाबा के चाचा थे दीवान बहादुर जानकी प्रसाद चतुर्वेदी।इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1880-90 के दशक में M.A. English और LLB (1st div.) किया था और इसी कारण ये समाज और परिवार में M.A.चच्चा के नाम से जाने जाते थे।इनका चयन तत्कालीन UP PCS सेवा में भी डिप्टी कलेक्ट्री हेतु हो गया था किंतु ये उस समय की पारिवारिक परम्परा निभाते हुए रीवा राज्य की सेवा में गए। जानकी प्रसाद जी ने तत्कालीन रीवा महाराज श्री व्यंकटरमण सिंह जी और श्री गुलाब सिंह जी के साथ तत्कालीन रीवा राज्य के लिए 1934 तक काम किया और फिर अपने बड़े भाई रोशन लाल जी का देहांत (1932 में ) हो जाने पर रिटायरमेंट  (1934 में ) ले लिया और अपने पैतृक निवास फिरोजाबाद आकर रहने लगे जहाँ वो 1936 तक यानी अपनी मृत्यु पर्यंत रहे।इनका भारत के स्वतंत्रता आंदोलन की लड़ाई लड़ रहे लोगों से निरन्तर निकट का सम्पर्क था और किचलू साहब,काटजू साहब,पंडित मोती लाल नेहरू आदि इलाहाबादी लोगों  से इनके व्यक्तिगत सम्पर्क-सम्बन्ध थे।रीवा राज्य की सेवा करते हुए ये अनेकों विभाग के मंत्री रह