महाराज जी-1
सुबह-सुबह ठाकुर जी को स्नान करा के अपनी दैनिक पूजा-अर्चना करके महाराज जी अपना सुबह का कलेवा कर रहे थे;अमरूद, सेब,कांसे के बेले में गर्म दूध और साथ में महीन छिली सी कतरनों जैसा गुड़।जाड़ों के दिन में महाराज जी सुबह यही कलेवा करते थे बस फल बदलते रहते थे।सुबह के इस कार्यक्रम को निबटा कर अब महाराज जी जीना उतर के अपने कमरे में आकर अपने तख्त पर बैठ चुके थे अपनी गम्भीर लेकिन अति सौम्य चिंतन मुद्रा में। अपनी उम्र के आठवें दशक के आखिर में पहुँच चुके सामान्य से छोटे कद के महाराज जी गौर वर्ण, गंजे हो चले सर पर उन्नत ललाट,सफेद मूँछें,एक देवता तुल्य तेजयुक्त चेहरा, सादा खद्दर की धोती और सर्दी के दिन होने पर हाथ का बना नेवी ब्ल्यू स्वेटर इस वेशभूषा में वो एक योगी, दिव्यात्मा और महात्मा ही लगते थे और कोई कह नहीं सकता था कि इस योगी व्यक्तित्व के पीछे एक सफल उद्योगपति,अति विद्वान शालीन व्यक्तित्व था जिसने अपने बूते पर 20वीं सदी के दूसरे दशक से अपने साम्राज्य की स्थापना की सफल शुरुआत की थी और जो अब व्यवहारिक रूप से एक घरेलू सन्यास आश्रम वैराग्य अवस्थित जीवन जी रहे थे।इन्हीं महाराज जी को शहर के मुहल्ले वाल