कोविड महामारी के मृतकों को श्रद्धांजलि और तर्पण इस पितृ-पक्ष में
कोविड महामारी के मृतकों को श्रद्धांजलि और तर्पण इस पितृ-पक्ष में "इस महामारी ने अधिकांश घरों से आहुति ली है तो ये हमारे घर से आहुति थी" ये लाइनें मेरे बाबा स्व0सुशील चंद्र चतुर्वेदी (1893-1980) की डायरी के सन 1918 के पन्ने से है जो उन्होंने अपने चाचा के लगभग 12-13 वर्ष के पुत्र राजेन्द्र जी के इन्फ़्लुएन्ज़ा से काल-कवलित होने पर लिखी है और जो लगभग एक शताब्दी पूर्व की उस महामारी की विभीषिका को बताती है।इस महामारी इन्फ़्लुएन्ज़ा/स्पेनिश फ्लू महामारी में लगभग 1 करोड़ 70 लाख या 1 करोड़ 80 लाख लोगों की केवल भारत में ही जान गई थी जो विश्व में सर्वाधिक ही थी।इन 18 मिलियन मौतों में लगभग 13 मिलियन तत्कालीन ब्रिटिश भारत वाले हिस्से में हुयी थीं।कहते हैं कि भारत की लगभग 5%जनसंख्या इस महामारी का शिकार हो गयी थी। 1911-1921 का दशक ही एक ऐसा दशक था जिसके दौरान भारत की जनसंख्या में गिरावट दर्ज हुई थी। महात्मा गांधी जी भी उस दौरान इस वायरस से पीड़ित हुए थे।महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने "कुल्ली भाट" में लिखा है कि,"मैं दालमऊ में गंगा के तट पर खड़ा था। जहाँ तक नज़र जाती थी गंगा