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Showing posts from September, 2022

कोविड महामारी के मृतकों को श्रद्धांजलि और तर्पण इस पितृ-पक्ष में

कोविड महामारी के मृतकों को श्रद्धांजलि और तर्पण इस  पितृ-पक्ष में "इस महामारी ने अधिकांश घरों से आहुति ली है तो ये हमारे घर से आहुति थी" ये लाइनें मेरे बाबा स्व0सुशील चंद्र चतुर्वेदी (1893-1980) की डायरी के सन 1918 के पन्ने से है जो उन्होंने अपने चाचा के लगभग 12-13 वर्ष के पुत्र राजेन्द्र जी के इन्फ़्लुएन्ज़ा से काल-कवलित होने पर लिखी है और जो लगभग एक शताब्दी पूर्व की उस महामारी की विभीषिका को बताती है।इस महामारी इन्फ़्लुएन्ज़ा/स्पेनिश फ्लू महामारी में लगभग  1 करोड़ 70 लाख या 1 करोड़ 80 लाख लोगों की केवल भारत में ही जान गई थी जो विश्व में सर्वाधिक ही थी।इन 18 मिलियन मौतों में लगभग 13 मिलियन तत्कालीन ब्रिटिश भारत वाले हिस्से में हुयी थीं।कहते हैं कि भारत की लगभग 5%जनसंख्या इस महामारी का शिकार हो गयी थी। 1911-1921 का दशक ही एक ऐसा दशक था जिसके दौरान भारत की जनसंख्या में गिरावट दर्ज हुई थी। महात्मा गांधी जी भी उस दौरान इस वायरस से पीड़ित हुए थे।महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला ने "कुल्ली भाट" में लिखा है कि,"मैं दालमऊ में गंगा के तट पर खड़ा था। जहाँ तक नज़र जाती थी गंगा

मेरी अगस्त 2022 की इटावा की तीर्थ यात्रा

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मेरी इटावा की तीर्थ यात्रा 28 अगस्त 2022 अभी कुछ दिन पहले 28 अगस्त को मेरा इटावा जाना हुआ।मेरे पुत्र अर्पित की और उपासना की शादी के बाद हम सबका मन था कि एक बार सबके साथ इटावा हो आएं किंतु कोरोना की महामारी और फिर मम्मी और पापा दोनों के न रहने से एक लंबे समय तक न जाना सम्भव हुआ और ना ही उस समय मन था। इस बार की इटावा यात्रा में मैं,मेरी पत्नी रचना,छोटे भाई अभिनव (गुड्डू) की पत्नी नीता,मेरे पुत्र अर्पित,अर्पित की पत्नी उपासना और मेरी पुत्री ऐश्वर्या गए थे।अब जब सबके साथ इटावा गए तो भले ही अपने होश संभालने के समय से ही इटावा की यादें भी हैं किंतु इस बार की इटावा यात्रा का अनुभव अलग ही था। इस इटावा यात्रा की चर्चा करूँ उसके पहले ये बताना उचित होगा कि इटावा से हमारे परिवार के पुश्तों से रिश्ते रहे हैं और हमारी लगभग 6 पीढ़ियों या सन 1850-1860 ईस्वी वाले दशक से तो जो रिश्ते रहे वो मेरी जानकारी में हैं। सबसे पहले एक संक्षिप्त विवरण इन रिश्तों का:- 1.हमारे बाबा स्व0 सुशील चन्द्र चतुर्वेदी जी के बाबा स्व0 मथुरा प्रसाद जी की बहन मुना का विवाह इटावा के सुंदर लाल जी चतुर्वेदी

सिंदबाद ट्रैवल्स-35 जर्मनी-4 फ्रैंकफर्ट-2 Sindbad Travels-35 Germany-4 Frankfurt-2

सिंदबाद ट्रैवल्स-35 जर्मनी-4  फ्रैंकफर्ट-2 Sindbad Travels-35 Germany-4 Frankfurt-2 Frankfurt Coordinates  50.1109° N, 8.6821° E कॉस्ट्यूम ज्वेलरी के उस विशाल शोरूम के मालिक सरदार जी से,जो लगभग पचास के आस पास की उम्र के रहे होंगे, मैंने नमस्कार की जिसका उन्होंने बड़ी ही बेरुखी से जवाब दिया और ऐसा जताया कि उनका मुझसे बात करने में कोई इंटरेस्ट नहीं था और अपना पल्ला छुड़ाने की कोशिश की मगर मैं भी तो आखिर दुबई से घाट-घाट का पानी पीते हुए यहाँ तक पहुँचा था तो मैं भी कहाँ हार मानने वाला था।मैंने सरदार जी की अनिच्छा और बेरुखी के बावजूद अपने काम के और प्रोडक्ट्स के विषय में बताते हुए अपने आने का उद्देश्य बताया।सरदार जी की टोन अब बेरुखी से आगे बढ़ते हुए शालीनता की सीमा के आखरी पड़ाव की तरफ अग्रसर सी होती दिख रही थी जबकि मैं अपने देश का वास्ता देते हुए पूरी शालीनता से अपने प्रयास में रत था और हॉं ये सारी बातचीत खड़े ही खड़े हो रही थी,सरदार जी ने पानी पूछना तो दूर मुझको बैठने की कहने की जहमत भी नहीं उठाई थी।काफी इसरार और कोशिश के बाद भी सरदार जी बिल्कुल पसीजे नहीं और अपनी बेरुखी पर ही अड़े रहे और आखिर म

सिंदबाद ट्रैवल्स-34 जर्मनी हाइडलबर्ग और फ्रैंकफर्ट Sinbad Travels-34 Heidelberg and Frankfurt

सिंदबाद ट्रैवल्स-34 जर्मनी-3  हाइडलबर्ग-3 साथ में फ्रैंकफर्ट-1 Sindbad Travels-34 Germany-3 Heidelberg-2 with Frankfurt-1 Frankfurt Coordinates  50.1109° N, 8.6821° E अगले दिन सुबह उठ कर तैयार होते में ही विकास बाफना जी और उनके साथी से बात हुई तो उन्होंने कहा कि फ्रैंकफर्ट में बुक फेयर लगा हुआ है और वो दोनों उसमें जा रहे हैं।उन्होंने मुझसे भी फेयर में चलने को कहा किंतु मुझको इस विषय में कोई जानकारी नहीं थी अतएव मैंने कहा कि भाई मैं एक्सपोर्ट करने आया हूँ न कि मेले घूमने;बाद में जाकर समझ में आया कि उस समय की मेरी यह सोच और समझ दरअसल मेरी कूपमंडूकता की ही द्योतक थी और कुछ नहीं।खैर… हम लोग हाइडलबर्ग स्टेशन से ट्रेन पकड़ कर फ्रैंकफर्ट के लिए चले।यूरोप की ट्रेनों और खास तौर पर जर्मनी की ICE Trains के विषय में आगे बताऊंगा अभी बस इतना कि यूरोप और खास तौर से जर्मनी की ट्रेनों में चलना एक शानदार अनुभव होता है।हाइडलबर्ग से फ्रैंकफर्ट का लगभग सवा घंटे का सफर रास्ते के दोनों ओर के मनभावन दृश्यों को मंत्रमुग्ध होकर देखते हुए ही बीता।फ्रैंकफर्ट मेन स्टेशन से बाहर निकल कर लगा कि एक अन्य किस्म के शहर म