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Showing posts from May, 2022

मेरी मई 2022 कीइलाहाबाद/प्रयागराज यात्रा-1

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मेरी इलाहाबाद-प्रयागराज यात्रा;मई 2022  ---(1)... अभी हाल ही में सपरिवार इलाहाबाद-प्रयागराज की यात्रा की और यह एक अत्यंत आनन्ददायक अनुभव रहा।सबसे पहले बात 27 मई 2022 के कार्यक्रम की। 27 मई को भारत के पहले प्रधानमंत्री स्व0 पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि थी और इसी दिन इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के मध्यकालीन और आधुनिक इतिहास विभाग के अध्यक्ष रहे प्रोफेसर हेरम्ब चतुर्वेदी द्वारा लिखी गयी पुस्तक "पं0 जवाहर लाल नेहरू विचार,विवाद और व्यक्तित्व" का लोकार्पण का कार्यक्रम था जो सायं काल "सुराज भवन" में होना तय था।इलाहाबाद विश्वविद्यालय के महिला छात्रावास परिसर के सामने यह भवन स्थित था और उस स्थान पर पहुँच कर मुझको याद आया कि यह घर विश्व-बैंक में अति उच्च पद पर रहे स्व0विनोद दुबे जी के पिता जी का हुआ करता था जो सम्भवतः इलाहाबाद विश्वविद्यालय के भूगोल विभाग में पढ़ाते थे और जब मैं इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढ़ता था उस समय इस मकान में स्व0 विनोद दुबे जी की माँ निवास करती थीं।कर्नाटक के राज्यपाल और भारत के कंट्रोलर एवं ऑडिटर जनरल तथा केंद्रीय गृह सचिव रहे स्व0टी0ऐन0 चतुर्वेदी जी की

राजीव गांधी व्यक्ति और व्यक्तित्व; विनम्र श्रद्धांजलि

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राजीव गांधी-व्यक्ति और व्यक्तित्व;विनम्र श्रद्धांजलि 22 मई 1991 की अल सुबह की बात है मैं इटावा में अपनी ननसार में सो रहा था।गत रात्रि यानी 21 मई को मैं इलाहाबाद से लौटता हुआ इटावा पहुँचा था।मेरे सहपाठी,रूम पार्टनर रहे और घनिष्ट मित्र धीरेंद्र पांडे जी ने ज्ञानपुर-गोपीगंज/भदोही से विधान सभा का चुनाव लड़ा था उनके चुनाव में कुछ दिन रहकर फिर कन्नौज से मेरे मौसाजी स्व0 प्रो0 रामस्वरूप चतुर्वेदी जी के अति घनिष्ट स्व0 टी0ऐन0चतुर्वेदी जी चुनाव लड़ रहे थे तो उनके क्षेत्र से होते हुए मैं और मेरे सुभाष मामा आदि लोग इटावा आये थे।उस दिन देर शाम को जब हम इटावा पहुँचे तो ऐसी भयंकर आंधी और तूफान आया जो उस से पहले कभी देखा-सुना नहीं था… तो 22 मई को अल सुबह हमारे नाना जी के घर के पास ही हिंदी के विद्वान राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त स्व0 शिव दत्त चतुर्वेदी जी का घर था उनके सबसे बड़े पुत्र श्री अशोक नारायण चतुर्वेदी जी ने नीचे सड़क से जोर आवाज में लगभग चिल्लाते हुए  बताया कि राजीव गांधी की गत देर शाम हत्या हो गयी है और यह समाचार सुनते ही हम सब लोगों को मानो सांप सूंघ गया था….कुछ क्षण किसी के मुँह से बोल नहीं फू

रिश्ते और संबंध

रिश्ते और संबंध You can choose your friends but you can't choose your family. इसी कहावत का और विस्तार किया जाए या थोड़ा परिवर्तन किया जाए तो हम कह सकते हैं कि रिश्ते तो हमको विरासत में मिलते हैं और संबन्ध हम स्वयं बनाते-निभाते और बिगाड़ते हैं।उदाहरण के लिए एक ही परिवार में अनेकों रिश्तेदार होते हैं जिनका रिश्ता आपस में कमोबेश एक सा ही होता है किंतु उनके आपसी संबन्ध सभी से एक से नहीं होते।कभी सोच कर देखा है कि ऐसा क्यूँ होता है?परिवार में ही आपसी संबन्ध अलग-अलग लोगों से भिन्न-भिन्न किस्म के क्यों होते हैं? चाहे खून के रिश्ते हों या अन्य किस्म के संबंध;ये एक किस्म का बगीचा होता है जिसमें अलग-अलग किस्म के पेड़,पौधे,फुलवारी आदि होते हैं जिनको सहेज कर रखने के लिए- उनकी नियमित देखभाल,भरोसे,प्यार,सद्भाव, सहजता,समझदारी,गाम्भीर्य,सदव्यवहार, शालीनता जैसी चीजों के खाद-पानी की आवश्यकता होती है।जब हम इन चीजों से रिश्तों-संबंधों की फुलवारी को सींचते रहते हैं तो हमारे रिश्ते-संबन्ध रोज़ ब रोज़ मजबूत होते जाते हैं और हमारा रिश्तों-संबंधों का बगीचा खूब पुष्पित और पल्लवित होता रहता है जिसकी खुशबू चारों ओ