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बुरा ना मानो होली है

#बुरा_ना_मानो_होली_है इन दिनों पूरे ब्रज क्षेत्र में होली का माहौल और खुमार रहता है पर इस बार तो लगता है न सिर्फ पूरे देश में बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में भी होली की रंग-तरंग की धूम है शायद सारे कुओं और नदियों में भांग पड़ गयी है या शायद समंदर में भी... होली मतलब हँसी, ठिठोली,भांग की तरंग और nothing serious. ब्रज क्षेत्र में तो भंग की तरंग का ऐसा जोर है कि जो छाने वो ताने , जो न छाने वो भी न जाने और ना ही माने. खुमार तो मुझ पर भी छा रहा है,इतिहास का विद्यार्थी हूँ और इतिहास ही गड्ड-मड्ड हुआ जा रहा है.  हांलांकि इस होली के माहौल में ये भी बता दूँ कि मैंने गोविंदा की एक फ़िल्म देखी थी,"क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता" तो देखिए मैं भी झूठ नहीं बोलता लेकिन आज अगर कुछ इधर का उधर हो जाये तो बस यही कहूँगा कि ,"बुरा न मानो होली है". ये तो हम सब ही जानते हैं कि होली हमारा सदियों पुराना त्योहार है और जब भगवान श्री कृष्ण ने पूतना का वध किया था तबसे होली मनाने की प्रथा शुरू हुयी यह ऐतिहासिक तथ्य हम सभी जानते हैं.बात जब इतिहास और होली की हो रही है तो लगे हाथ ये भी बता दूँ कि होली क

इटावा की हेशमी

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कुछ दिनों से  एक प्रश्न मन में उठ रहा था कि संस्कृति और विरासत क्या है? केवल क्षेत्रीय/इलाकाई/राष्ट्रीय/युगीन परम्पराएं? या केवल क्षेत्रीय/इलाकाई/राष्ट्रीय/युगीन वस्त्रादिभूषण,इमारतें, इतिहास, रीति-रिवाज,बोलचाल? या किसी समाज, देश आदि की प्रथाएँ, विचारधाराएँ, विश्‍वास आदि? अथवा,कला; साहित्‍य, संगीत आदि; संस्‍कृति-विरासत है? हम सब जानते हैं कि उपरोक्त सब किसी भी संस्कृति-विरासत के अंग हैं और इसके अतिरिक्त भी बहुत सी बातें हैं जो किसी भी संस्कृति-विरासत को उसका रूप देती हैं.मेरी रुचि इस विषय में रही है और समय-समय पर मैं इस से सम्बंधित ब्लॉग लिखता हूँ और वीडियो/यू-ट्यूब भी बनाता हूँ. अक्सर मैं सोशल मीडिया पर लोगों द्वारा खाने-पीने सम्बन्धित पोस्ट्स भी देखता हूँ जो बहुत रोचक भी होती हैं किंतु उनमें से अधिकांश Non-Vegetarian dishes से सम्बंधित होती हैं. हमारे देश और विभिन्न प्रदेशों में शाकाहारी व्यंजनों की भी बहुत ही rich संस्कृति और विरासत है.हम लोग जो ब्रज-क्षेत्र के रहने वाले हैं यहाँ तो खाना-पीना-बनाना-खिलाना एक प्रकार से एक पूर्णकालिक शौक रहा है और मिठाइयों की भी एक अलग विरासत है.आज हम