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मेरी कविता: "मेरा दिल है कि मानता नहीं"

https://youtu.be/O4TymLwqp80 My poetry recitation during the 126th birth anniversary celebration of Padmabhushan Pt.Banarsidas Chaturvedi on 24th december 2018 at Chauban Dharmshala, Firozabad. सब कहते हैं कि अब तो ईमानदारी,समझदारी, देश और देश भक्ति का बोलबाला है, जो कुछ हो रहा है और जो भी कर रहा है, सब देश और सिर्फ देश के लिए, खिलाड़ी सिर्फ देश के लिए खेलते हैं, न लोभ ना लालच पैसे का, न नाम की भूख न विज्ञापन की चाह, न सलेक्शन में सैटिंग की जरूरत, न मैच फिक्सिंग का प्रयास, सब कहते हैं कि वो तो सारे काम बस ऐसे ही हो जाते हैं, लेकिन मेरा दिल है ना जो, वो मानता नहीं, यद्यपि आप कह सकते हैं कि ये कुछ जानता नहीं।। अधिकारी हैं जो, वो सिर्फ जनसेवा के लिए काम करते हैं, न लोभ ना लालच पैसे का, न नाम और रिश्वत की भूख न समाचारों में नेताओं की भांति फोटो छपाने की चाह, न ट्रांसफर,पोस्टिंग को नेता के पैर छूना, न टेंडर में कमीशन खाना, सब कहते हैं कि, वो तो सारे काम बस ऐसे ही हो जाते हैं…. लेकिन मेरा दिल है ना जो, वो मानता नहीं, यद्यपि आप कह सकते हैं कि ये कुछ जानता नहीं।। और जो

Sindbad Travels-29 Switzerland-1 Geneva

Sindbad Travels:-29, Switzerland-1 Geneva सिंदबाद ट्रेवल्स:- 29 स्विट्ज़रलैंड-1 जिनेवा पेरिस से जिनेवा,स्विट्ज़रलैंड की ओर मैं, जहाज में बैठा, उड़ा जा रहा था.यह स्विस एयर का जहाज था जो कि अंतरमहाद्वीपीय/अंतरराष्ट्रीय उड़ानों वाले जम्बो जेट- बड़े बोइंग 747 या एयर बस जहाजों से छोटा था यद्यपि तकनीकी रूप से यह भी एक अंतर्राष्ट्रीय उड़ान ही थी. जहाज हवा में आने के बाद स्विस एयर की एयर होस्टेस अपनी नेवी ब्लू यूनीफॉर्म में जिसमें शर्ट सफेद थी काफी चुस्ती से सब लोगों को स्नैक्स परोस रही थीं.स्विस एयर के स्नैक्स का स्तर काफी अच्छा था. जहाज में मेरी सीट खिड़की वाली थी और ऊपर से देखने पर नीचे की वादियां, बर्फ से आच्छादित पहाड़ और हरियाली भी कहीं कहीं बहुत ही मनोरम दृश्य उत्पन्न कर रहे थे. मुझे घर से विदेश यात्रा पर निकले लगभग 18 दिन हो चले थे.मैं जहाज में बैठे-बैठे सोच रहा था कि कैसे दुबई में शरद भाईसाहब से मुलाकात हुई और कपूर साहब ने पहला ऑर्डर दिया.मुझको दोहा के इस्माइल शेख,बहरीन के रतन कपूर भाईसाहब,भाभी,आंखों से न देख सकने वाले व्यापारी शेख जुबारी, आबूधाबी के इब्राहीम अहमद मत्तार साहब याद आ रहे

ये कैसा विकास है

ये जो फोटो आप देख रहे हैं इसमें मेरे साथ जो सज्जन हैं उनका नाम श्री विजय सिंह है और मैं अभी दिल्ली में जहाँ रुका था ये उसी कॉलोनी में एक सिक्योरिटी एजेंसी के माध्यम से गार्ड की नौकरी कर रहे हैं. कल सुबह जब मैं अपनी कार में बैठ रहा था तो मेरी इनसे दुआ-सलाम हुई तो इन्होंने मुझसे अपनी कहानी बताई जो इस विकासशील देश के हर प्रबुद्ध नागरिक को जाननी चाहिए. विजय सिंह जी ने मुझको बताया कि ये कलकत्ता (अब कोलकाता) में साड़ी प्रिंटिंग की एक फैक्ट्री के मालिक थे और इनका सालाना टर्नओवर 30-40 लाख रुपये के करीब था.इनकी फैक्ट्री में लगभग 14-15 लोग काम करते थे अर्थात इन्होंने अपनी फैक्ट्री के माध्यम से लगभग 14-15 लोगों को रोजगार भी दे रखा था.जब देश में GST लागू हुआ तो वो इन जैसे अनेकों लघु उद्यमियों के लिए बर्बादी का पैगाम लेकर आया.हुआ ये कि इन लोगों को जो भी कच्चा माल रंग आदि लेना होता वो तो जीएसटी देकर लेना पड़ता किन्तु इस कानून के अनुसार 80 लाख तक की सालाना बिक्री तक जीएसटी की छूट होने के कारण इन लोगों को आगे अपना माल बेचने पर पहले से दिए गए जीएसटी की छूट नहीं मिल पाती थी जिसके परिणामस्वरूप बिक्री के