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Showing posts from 2023

रामसेतु : मिथक नहीं सत्य

रामसेतु भारतीय संस्कृति और सांस्कृतिक-धार्मिक इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थल है जिसका हमारी संस्कृति में अत्यधिक महत्व माना गया है। रामसेतु, भारतीय उपमहाद्वीप के दक्षिणी भाग में स्थित है। रामसेतु भारतीय आमजन में उस संरचना को कहा गया है जो भारतीय संस्कृति,पौराणिक आख्यान,भारतीय साहित्य और आम जन के विश्वास के अनुसार भगवान राम द्वारा रावण को पराजित करने हेतु लंका जाने के लिए भारत और लंका के बीच के समुद्र में बनाया गया था। रामर पालम या रामसेतु तमिलनाडु, भारत के दक्षिण पूर्वी तट के किनारे रामेश्वरम द्वीप तथा श्रीलंका के उत्तर पश्चिमी तट पर मन्नार द्वीप के मध्य स्थित था और भौगोलिक प्रमाणों से यह पता चलता है कि किसी समय यह सेतु भारत तथा श्रीलंका को भू मार्ग से आपस में जोड़ता था। रामसेतु के विषय में विविध  किस्म के आख्यान हैं, विश्वास हैं और मान्यताएं भी हैं। एक विचार यह कहता है कि यह संरचना प्राकृतिक है न कि मानव निर्मित तो एक  विचार और विश्वास इसको रामायण काल और भगवान राम से जोड़ता है। सबसे पहले चर्चा करते हैं  हमारे सामाजिक, सांस्कृतिक, पौराणिक, धार्मिक और ऐतिहासिक साहित्य में इस सेतु की चर्चा

हनुमान जी,चामुंडा देवी और हम लोगों की कुलदेवी महाविद्या जी के दर्शन

आज यानी 8 जुलाई 2023,शनिवार का दिन अपने परिवार के इष्टदेव हनुमान जी,चामुंडा देवी और हम लोगों की कुलदेवी महाविद्या जी के दर्शन में व्यतीत हुआ। चूंकि घर पर सारे बच्चे मौजूद थे तो आज ऐसा कार्यक्रम बन गया।सबसे पहले फिरोजाबाद स्थित बड़े हनुमान जी के मंदिर गए।वहाँ हम सभी परिवारीजन ने दर्शन किये।मंदिर में ज्योतिर्विद पंडित राजीव लोचन मिश्र का आशीर्वाद भी सबको प्राप्त हुआ। पुत्रवधू उपासना को वहाँ लगा वो पत्थर भी दिखाया जो हम लोगों के परिवार के भी हनुमान जी के मंदिर से पुराने जुड़ाव को बताता है।हनुमान जी का फिरोजाबाद स्थित यह सिद्ध स्थल  मंदिर अत्यंत प्राचीन है और कहते हैं कि  इसका एक बार निर्माण/जीर्णोद्धार मराठा राज्य के दौरान तत्कालीन महाराजा सिंधिया ने भी कराया था।एक मान्यता के अनुसार इस मंदिर की स्थापना मराठा शासन के दौरान बाजीराव पेशवा द्वितीय ने की थी। फिरोजाबाद के इतिहास और संस्कृति में इस मंदिर का भिबेक अलग स्थान रहा है।इस मंदिर के विषय में विस्तार से अलग से फिर कभी लिखूंगा। इसके बाद हम लोग यानी मेरी पत्नी रचना,पुत्र अर्पित,पुत्री ऐश्वर्या, पुत्रवधू उपासना और भतीजा अभीष्ट मथुरा स्थित चाम

भारत में काँच उद्योग का इतिहास-विशेष संदर्भ फिरोजाबाद भाग-1

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आजकल भारत में काँच उद्योग,विशेष सन्दर्भ फिरोजाबाद विषय पर काम कर रहा हूँ।उसी से कुछ अंश:- भारत में काँच उद्योग का इतिहास- विशेष संदर्भ फिरोजाबाद ऐसे बहुत कम लोग होंगे जिन्होंने अपने जीवन में कहीं न कहीं,किसी न किसी रूप में ग्लास या काँच को न देखा हो।काँच का उत्पाद जब सजावटी होता है तो मनुष्य को आकर्षित करता है,जब औषधीय काम में प्रयुक्त हो रहा हो तो उम्मीद और भय दोनों जगाता है,जब दैनिक उपयोग की वस्तु हो तो खरीदने की इच्छा जगाता है और जब इसका उपयोग विज्ञान,उद्योग या किसी ऐसे क्षेत्र में होता दिखे जिसके विषय में हम नहीं जानते तो यह आश्चर्य, उत्सुकता और जिज्ञासा के मिले-जुले भाव उत्पन्न करता है। वैसे तो जब से यह पृथ्वी बनी है तभी से काँच भी यहाँ बन गया होगा क्योंकि जब ज्वालामुखी फट रहे होंगे तो उसकी गर्मी से लावा तो निकलता ही है पर कई स्थानों पर रेत ने पिघल कर काँच का रूप ले लिया होगा।मानव सभ्यता के विकास के क्रम में कहीं न कहीं,कभी न कभी मनुष्य का ध्यान उस काँच पर गया होगा और वो उसकी ओर आकृष्ट हुआ होगा।मानव स्वभाव है कि जब वह किसी वस्तु की ओर आकर्षित होता है तो उसमें उस वस्तु के प्रति जिज

फिर कुछ पुराने कागज मिले, बाबा के इतिहास के पन्नों से

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आज फिर कुछ पुराने कागज मिले, बाबा के इतिहास के पन्नों से इनमें इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की डिग्री, रुड़की का सर्टिफिकेट, फिरोजाबाद के स्कूल का सन 1899 के ऐडमिशन का ट्रांसफर सर्टिफिकेट, पूज्यनीय स्व0 डॉक्टर  बाबूराम सक्सेना का बाबा को पत्र,  म्यो कॉलेज अजमेर का सर्टिफिकेट आदि हैं।जिन लोगों की इतिहास में रुचि है या इलाहाबाद से सम्बन्ध है उम्मीद है उनको ये पोस्ट अच्छी लगेगी।

इतिहास के पन्नों से:- कानपुर के 1925 का कांग्रेस अधिवेशन का जिक्र बाबा की डायरी से

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इतिहास के पन्नों से:- कल कुछ पुराने कागज देख रहा था।उनमें हमारे बाबा स्व0 सुशील चंद्र चतुर्वेदी जी की 1925 की डायरी में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन,जिसमें उन्होंने भाग लिया था उसकी चर्चा देखी।बाबा लिखते हैं अद्भुत नजारा था,मेले जैसा आयोजन था,अलग-अलग न जाने कितने पंडाल लगे हुए थे।गांधी जी, लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ0मुंजी, स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू, केलकर जी आदि लोग भी उन पंडालों में मौजूद थे।उस दिन गांधी जी का मौन व्रत का दिन था। पंडालों में बिछे गद्दे 1916 से फर्क थे।बाबा लिखते हैं कि उस आयोजन में विभिन्न बाज़ार भी लगे हुए थे।न जाने कितने यानी असंख्य लोग थे। यह वृहद आयोजन और इतनी बड़ी संख्या में लोगों की सहभागिता बताती थी कि कांग्रेस आंदोलन और विचार अब बहुत बड़ा रूप ले चुका था।बाबा आदि लोग कानपुर की प्रताप प्रेस में रुके थे।बाबा आदि को स्टेशन पर रिसीव करने दादाजी पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी आये थे जो गांधी जी और इस आयोजन से जुड़े सक्रिय और महत्वपूर्ण लोगों में थे।

गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार;बधाई

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वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर को बधाई।  मेरे जैसे न जाने कितने लोग बचपन से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कल्याण, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, श्री राम चरितमानस और न जाने कितने  ऐसे ग्रन्थ पढ़ते हुए बड़े हुए हैं।कल्याण में छपी "पढ़ो,समझो और करो" के किस्सों से न जाने कितने लोगों को अच्छे कर्म और परोपकार करने की प्रेरणा मिली होगी।मुझको याद है कि आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व बचपन में मेरे बाबा स्व0 सुशील चंद्र चतुर्वेदी जी हमको इन कथानकों को पढ़ने को प्रेरित करते थे। 1923 में स्थापित, गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है।गीता प्रेस ने हमारे प्राचीन सामाजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथों को शुध्द रूप में,हिंदी अनुवाद के साथ, उचित दामों में जन साधारण को उपलब्ध करा कर दशकों से हमारी प्राचीन संस्कृति से न जाने कितनी नयी पीढ़ियों को परिचित कराने का काम किया है।  

देश की प्रगति का अर्थ नौजवानों का जॉब सीकर से जॉब गिवर बनना

देश की प्रगति का अर्थ नौजवानों का जॉब सीकर से जॉब गिवर बनना हमारे देश में काफी समय से इस बात की चर्चा रहती है कि हम सबसे नौजवान देश हैं,हमारे यहाँ युवाओं की जनसंख्या सबसे अधिक है आदि।हम ये चर्चा भी सुनते हैं कि हमारे देश में नए शिक्षण संस्थान हर प्रकार की शिक्षा के लिए खुल रहे हैं वो चाहे स्कूली शिक्षा हो, कॉलेज की शिक्षा हो अथवा व्यावसायिक शिक्षा हो। इन सारी बातों के बावजूद क्या हमारे युवा वास्तव में रोजगार पा रहे हैं? क्या वास्तव में हमारे शिक्षण संस्थान विश्व स्तरीय शिक्षा दे पा रहे हैं? क्या हम अपने युवाओं को उनके भविष्य हेतु समुचित और सही अवसर प्रदान कर पा रहे हैं? क्या वास्तव में हम अपने युवाओं के रूप में मौजूद अपने देश की सबसे बड़ी ताकत,एनर्जी और रिसोर्स का सदुपयोग कर पा रहे हैं? यदि आप निष्पक्ष होकर और ध्यान से सोचेंगे तो इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर मिलेगा और वो है "बिल्कुल नहीं"। हमारे लिए ये सोचना आज जरूरी हो गया है कि आखिर वो क्या कारण हैं जिनसे हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं और इस प्रश्न में ही वो उत्तर भी छिपा है कि आखिर हमको क्या करना चाहिये।हम सभी जानते हैं कि किस

हमारे देश के सरकारी और प्राइवेट अस्पताल;एक अनुभव और विचार

पिछले कुछ दिनों में कुछ परिवारीजनों-रिश्तेदारों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के कारण मुझको अलग-अलग कई अस्पतालों में जाना पड़ा।इनमें से अधिकांश अस्पताल प्राइवेट थे और कुछ सरकारी भी। इस दौरान हुए अनुभवों से मेरे मन में कुछ प्रश्न उठे और कुछ बातें मैं सोचने पर मजबूर हो गया। मुझको लगा कि इन बातों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से आप लोगों से भी शेयर करूँ। मैं गुरुग्राम,दिल्ली या नोएडा के किसी भी बड़े प्राइवेट अस्पताल में गया तो मरीज के प्रति चिंता तो घरवालों और रिश्तेदारों को होती ही है किंतु इन प्राइवेट अस्पतालों में जाकर/घुसते में आपको अन्य किसी किस्म के भय की अनुभूति न के बराबर होती है।आपको गंदगी देखने को नहीं मिलेगी, बड़े से अहाते या बीच के स्थान में विजिटर्स के बैठने को अच्छा साफ-सुथरा स्थान दिखेगा, भीड़ दिखेगी लेकिन बहुत अव्यवस्थित कुछ नहीं प्रतीत होगा।शौचालय साफ-सुथरे मिलेंगे,चाय आदि पीनी हो तो डाइनिंग एरिया भी साफ-सुथरा दिखता है।जहाँ तक डॉक्टरों का सवाल है तो इन प्राइवेट अस्पतालों में आपको नामचीन और कुशल डॉक्टर काफी मिलेंगे जिनमें से बहुत से एम्स आदि जैसे प्रसिद्ध सरकारी संस्थान

बंदी देवी और दाऊजी के दर्शन 21 मार्च 2023

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कल मंगलवार दिनांक 21 मार्च जो विक्रम सम्वत्  2079 का आखिरी दिन था को मथुरा-महावन में इलाके में स्थित बंदी देवी,आनंदी देवी और मनोवांछा देवी के दर्शनों का सौभाग्य प्राप्त हुआ।बंदी देवी भगवान श्रीकृष्ण और बलराम जी के परिवार की कुलदेवी बताई गई हैं और कहते हैं कि श्रीकृष्ण जी और बलदाऊ और बाद में उनकी संतानों का भी मुंडन संस्कार यहीं हुआ था। देवी के योगमाया रूप और कंस के कारागार से भगवान श्री कृष्ण के निकलने की कथा से हम सब परिचित हैं ही। कहते हैं भगवान श्री कृष्ण को उन पर आने वाले संकटों से बचाने हेतु यशोदा मैया ने मनोवांछा देवी से प्रार्थना की थी। आगरा के सेठ घासीराम ने इस मंदिर का जीर्णोद्धार 14वीं शताब्दी में कराया था और वहाँ एक अष्टकोणीय तालाब/कुंड भी बनवाया था। बंदी देवी का मंदिर राया से बलदेव के बीच में बलदेव से 3 किलोमीटर और राया से लगभग 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है और देवी के नाम पर ही उस गांव का नाम भी बंदी गांव ही है।यह बहुत सिद्ध स्थल माना गया है और भागवत के दसवें स्कंध के  तीसरे और चौथे अध्याय में बंदी देवी की चर्चा है। मेरे  पिता जी स्व0 अशोक चंद्र चतुर्वेदी जी की इस स्थान म

महाशिवरात्रि

आज महाशिवरात्रि का दिन है और लोग त्योहार मना रहे हैं।मुझको याद आता है जब हम इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के सर गंगा नाथ झा हॉस्टल में रहते थे।हॉस्टल में वैसे तो हर त्योहार काफी धूम-धाम से मनाया जाता था किंतु महाशिवरात्रि की बात ही कुछ और थी।सुबह से सभी इनमेट्स में उत्साह देखते बनता था और शाम का इंतज़ार भी।वैसे तो हॉस्टल में सात्विक,राजसी और तामसी शौक-विचार रखने वाले अनेकों लोगों के अपने-अपने ग्रुप हुआ करते थे लेकिन महाशिवरात्रि की शाम का इंतज़ार सभी को उतने ही भक्तिभाव से रहता था। शाम होने पर हॉस्टल के कॉमन रूम में पूजा होती थी फिर भांग,प्रसाद आदि का वितरण होता था और विशेष आकर्षण रहता था गरमा गरम गुलाब जामुन का।उस समय की धूम,जोश और हो-हुल्लड़ का नज़ारा ही अलग होता था।आज भी सब महाशिवरात्रि के त्योहार को मनाते होंगे,आनन्द भी  आता होगा लेकिन छात्रावास के माहौल और इष्ट-मित्रों के साथ भांग और गुलाब जामुन के साथ का मौज और मजा कुछ और ही था।अब भी जब उन दिनों को याद करते हैं तो मन कहता है कि काश कोई लौटा दे वो बीते हुए दिन.... आप सभी को महाशिवरात्रि पर्व की बधाई! जय साम्बसदाशिव! हर हर महादेव! 🙏🙏

फिरोजाबाद के जिला बनने के 34 साल

आज जब फ़िरोज़ाबाद जनपद की स्थापना के 34 वर्ष पूरे होने पर यह लेख लिखने बैठा हूँ तो मुझको याद आ रहा है 5 फरवरी 1989 का वो दिन और उस दिन का माहौल जब फ़िरोज़ाबाद के टीबी अस्पताल ग्राउंड में मंच से उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी जी (अब स्वर्गीय) ने फ़िरोज़ाबाद को जिला बनाने की घोषणा की थी.मंच से ही उन्होंने जिले के पहले जिलाधीश ऐस0सी0रस्तोगी जी (अब स्वर्गीय) और जिले के पहले पुलिस अधीक्षक श्री अरविंद जैन का परिचय कराया था.मंच पर उस समय के कांग्रेस के सांसद गंगाराम जी(अब स्वर्गीय), जलेसर के सांसद रहे श्री कैलाश यादव,कांग्रेस के विधायक रहे गुलाम नबी साहब, फ़िरोज़ाबाद नगर पालिका के तत्कालीन चेयरमैन (जिले बनने के बाद पहले चेयरमैन) स्व0 श्री अशोक चतुर्वेदी जी,  नगर विधायक रघुवर दयाल वर्मा जी(अब स्वर्गीय), टूण्डला के तत्कालीन विधायक श्री अशोक सेहरा आदि मौजूद थे और सामने था उम्मीदों, आशाओं,आकांक्षाओं और कृतज्ञता से भरपूर फ़िरोज़ाबाद की जनता का अपार जनसमूह. स्व0तिवारी जी ने जब जिला बनाने की घोषणा की तब के हर्षोल्लास से भरे जयकारे आज भी फ़िरोज़ाबाद की फ़िज़ाओं में घूम रहे हैं. फ़िरोज़ाबाद क

कोबरा

"कोबरा" लेप लगा के चंदन का और मीठा दूध पिलाने से कोबरा  विष-हीन बन पाते हैं क्या प्यार से सहलाने से? उतार लबादा अच्छे का, मिलते ही मौका  विष-दंत अपने वो दिखाते हैं अपना जो भी फंस गया बस उसको धीरे से वो डस जाते हैं।। दशकों बिल में सिमटे रहकर, वक़्त के इंतज़ार में हॉं जी- हॉं साहब कह-कह कर, षड्यंत्र अपना रचाते हैं, मीठी-मीठी बातें कर के मृत्यु प्रयोग वो कर जाते हैं याद करो उस वक़्त को , जब फैलाये तुम सबने अपने फन औ फंदे थे, एक असहाय का खून बहा था छत पर  और तुम सबके हाथों  में पिस्तौल और डंडे थे।। दशक बीत गए मीठे-झूठे धोखा तुम्हारा सच्चा है, दाग खून के सूख गए हैं  पर वो कपड़ा अब भी रखा है।। अहसानों की तो बात ही छोड़ो कृतघ्न तो तुम पुराने हो, दुनिया तुमको ना जाने हमारे लिए तुम अब जाने पहचाने हो।। लेप लगा के चंदन का  और मीठा दूध पिलाने से कोबरा विष-हीन बन पाते हैं क्या प्यार से सहलाने से? उतार लबादा अच्छे का, मिलते ही मौका  विष-दंत अपने वो दिखाते हैं। अपना जो भी फंस गया बस उसको धीरे से वो डस जाते हैं।। एक-एक हर्फ लिखा रखा है, सच्चाई जो तुम्हारी कहता है हमको सब पता है कि किस की खाल में

ब्रज और आस-पास के क्षेत्र का खान-पान एवं व्यंजन

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ब्रज और आस-पास के क्षेत्र का खान-पान एवं व्यंजन आजकल यूट्यूब,टी वी चैनल्स,मैगज़ीन्स, समाचार पत्र सारी जगहों पर रेसिपीज और खाने पर काफी चर्चा और शो देखने-पढ़ने को मिलते हैं।इनके माध्यम से हमको विभिन्न देशों और खुद अपने देश के विभिन्न इलाकों के खाने के इतिहास,खाने की संस्कृति और खाने की चीज़ों के विषय में जानकारी मिलती है जो काफी अच्छी और रोचक भी होती है।अगर हम केवल अपने देश की बात करें तो कह सकते हैं कि जितना हमारे देश में विभिन्न इलाकों के मौसम, जलवायु और क्षेत्रीय संस्कृतियों में फर्क है उतना ही हर क्षेत्र के खाने में और जैसे इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हम सब एक हैं यानी कि भारतीय वैसे ही इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हमारे सभी खानों का मूल स्वाद और भाव एक ही है यानी कि हिंदुस्तानी-विशुद्ध भारतीय! आज अपने इस लेख के द्वारा मैं चर्चा करना चाहूंगा एक क्षेत्र विशेष यानी "ब्रज क्षेत्र" और उसके आगे भी आस-पास के परंपरागत खान-पान की।इनमें से अधिकतर व्यंजन इस इलाके में अधिकांश लोगों के खान-पान का हिस्सा सदियों से रहे हैं और कुछ चतुर्वेदी समुदाय के विशेष रूप से। जब मीडिया या सोशल मीडिया में

दादाजी बनारसीदास चतुर्वेदी और प्रवासी भारतीय

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आज समाचारपत्रों में एक बार फिर से मध्यप्रदेश में हो रही प्रवासी भारतीय ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को लेकर प्रवासी भारतीयों की चर्चा है। इस अवसर पर मैं याद करना चाहूँगा पदम भूषण दादा जी स्व0 बनारसी दास जी चतुर्वेदी को जिन्होंने प्रवासी भारतीयों के हित चिंतन को बहुत काम किया और महात्मा गांधी जी के कहने पर फीजी आदि देशों की यात्रा भी प्रवासी भारतीयों की उस समय की दुर्दशा देखने को की। दादा जी ने फर्रुखाबाद में अपने अध्यापन काल में ही तोताराम सनाढ्य के लिए उनके संस्मरणों की पुस्तक 'फिज़ी द्वीप में मेरे 21 वर्ष' लिखी थी। 'फिज़ी द्वीप में मेरे 21 वर्ष' के संस्मरणों में उस द्वीप पर अत्यंत दारुण परिस्थितियों में काम करने वाले भारत के प्रवासी गिरमिटिया मजजदूरों की त्रासदी का बड़ा ही संवेदनाप्रवण चित्रण था। बाद में चतुर्वेदी जी ने सीएफ एंड्रयूज़ की माध्यम से इन मजदूरों की दुर्दशा का अंत सुनिश्चित करने के लिए बहुविध प्रयत्न किए।यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस जमाने में विदेश में बसे भारतीय लोगों के हालात बहुत खराब थे और वो अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहने को मजबूर थे।ये वर्तमा