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Showing posts from June, 2023

इतिहास के पन्नों से:- कानपुर के 1925 का कांग्रेस अधिवेशन का जिक्र बाबा की डायरी से

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इतिहास के पन्नों से:- कल कुछ पुराने कागज देख रहा था।उनमें हमारे बाबा स्व0 सुशील चंद्र चतुर्वेदी जी की 1925 की डायरी में कानपुर में हुए कांग्रेस अधिवेशन,जिसमें उन्होंने भाग लिया था उसकी चर्चा देखी।बाबा लिखते हैं अद्भुत नजारा था,मेले जैसा आयोजन था,अलग-अलग न जाने कितने पंडाल लगे हुए थे।गांधी जी, लाला लाजपत राय, पंडित मदन मोहन मालवीय, डॉ0मुंजी, स्वर कोकिला सरोजिनी नायडू, केलकर जी आदि लोग भी उन पंडालों में मौजूद थे।उस दिन गांधी जी का मौन व्रत का दिन था। पंडालों में बिछे गद्दे 1916 से फर्क थे।बाबा लिखते हैं कि उस आयोजन में विभिन्न बाज़ार भी लगे हुए थे।न जाने कितने यानी असंख्य लोग थे। यह वृहद आयोजन और इतनी बड़ी संख्या में लोगों की सहभागिता बताती थी कि कांग्रेस आंदोलन और विचार अब बहुत बड़ा रूप ले चुका था।बाबा आदि लोग कानपुर की प्रताप प्रेस में रुके थे।बाबा आदि को स्टेशन पर रिसीव करने दादाजी पंडित बनारसी दास चतुर्वेदी आये थे जो गांधी जी और इस आयोजन से जुड़े सक्रिय और महत्वपूर्ण लोगों में थे।

गीता प्रेस को वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार;बधाई

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वर्ष 2021 का गांधी शांति पुरस्कार के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर को बधाई।  मेरे जैसे न जाने कितने लोग बचपन से गीता प्रेस द्वारा प्रकाशित कल्याण, श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण, श्री राम चरितमानस और न जाने कितने  ऐसे ग्रन्थ पढ़ते हुए बड़े हुए हैं।कल्याण में छपी "पढ़ो,समझो और करो" के किस्सों से न जाने कितने लोगों को अच्छे कर्म और परोपकार करने की प्रेरणा मिली होगी।मुझको याद है कि आज से लगभग 50 वर्ष पूर्व बचपन में मेरे बाबा स्व0 सुशील चंद्र चतुर्वेदी जी हमको इन कथानकों को पढ़ने को प्रेरित करते थे। 1923 में स्थापित, गीता प्रेस दुनिया के सबसे बड़े प्रकाशकों में से एक है।गीता प्रेस ने हमारे प्राचीन सामाजिक,सांस्कृतिक और धार्मिक ग्रंथों को शुध्द रूप में,हिंदी अनुवाद के साथ, उचित दामों में जन साधारण को उपलब्ध करा कर दशकों से हमारी प्राचीन संस्कृति से न जाने कितनी नयी पीढ़ियों को परिचित कराने का काम किया है।  

देश की प्रगति का अर्थ नौजवानों का जॉब सीकर से जॉब गिवर बनना

देश की प्रगति का अर्थ नौजवानों का जॉब सीकर से जॉब गिवर बनना हमारे देश में काफी समय से इस बात की चर्चा रहती है कि हम सबसे नौजवान देश हैं,हमारे यहाँ युवाओं की जनसंख्या सबसे अधिक है आदि।हम ये चर्चा भी सुनते हैं कि हमारे देश में नए शिक्षण संस्थान हर प्रकार की शिक्षा के लिए खुल रहे हैं वो चाहे स्कूली शिक्षा हो, कॉलेज की शिक्षा हो अथवा व्यावसायिक शिक्षा हो। इन सारी बातों के बावजूद क्या हमारे युवा वास्तव में रोजगार पा रहे हैं? क्या वास्तव में हमारे शिक्षण संस्थान विश्व स्तरीय शिक्षा दे पा रहे हैं? क्या हम अपने युवाओं को उनके भविष्य हेतु समुचित और सही अवसर प्रदान कर पा रहे हैं? क्या वास्तव में हम अपने युवाओं के रूप में मौजूद अपने देश की सबसे बड़ी ताकत,एनर्जी और रिसोर्स का सदुपयोग कर पा रहे हैं? यदि आप निष्पक्ष होकर और ध्यान से सोचेंगे तो इन सभी प्रश्नों का एक ही उत्तर मिलेगा और वो है "बिल्कुल नहीं"। हमारे लिए ये सोचना आज जरूरी हो गया है कि आखिर वो क्या कारण हैं जिनसे हम ऐसा नहीं कर पा रहे हैं और इस प्रश्न में ही वो उत्तर भी छिपा है कि आखिर हमको क्या करना चाहिये।हम सभी जानते हैं कि किस

हमारे देश के सरकारी और प्राइवेट अस्पताल;एक अनुभव और विचार

पिछले कुछ दिनों में कुछ परिवारीजनों-रिश्तेदारों की स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं के कारण मुझको अलग-अलग कई अस्पतालों में जाना पड़ा।इनमें से अधिकांश अस्पताल प्राइवेट थे और कुछ सरकारी भी। इस दौरान हुए अनुभवों से मेरे मन में कुछ प्रश्न उठे और कुछ बातें मैं सोचने पर मजबूर हो गया। मुझको लगा कि इन बातों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के माध्यम से आप लोगों से भी शेयर करूँ। मैं गुरुग्राम,दिल्ली या नोएडा के किसी भी बड़े प्राइवेट अस्पताल में गया तो मरीज के प्रति चिंता तो घरवालों और रिश्तेदारों को होती ही है किंतु इन प्राइवेट अस्पतालों में जाकर/घुसते में आपको अन्य किसी किस्म के भय की अनुभूति न के बराबर होती है।आपको गंदगी देखने को नहीं मिलेगी, बड़े से अहाते या बीच के स्थान में विजिटर्स के बैठने को अच्छा साफ-सुथरा स्थान दिखेगा, भीड़ दिखेगी लेकिन बहुत अव्यवस्थित कुछ नहीं प्रतीत होगा।शौचालय साफ-सुथरे मिलेंगे,चाय आदि पीनी हो तो डाइनिंग एरिया भी साफ-सुथरा दिखता है।जहाँ तक डॉक्टरों का सवाल है तो इन प्राइवेट अस्पतालों में आपको नामचीन और कुशल डॉक्टर काफी मिलेंगे जिनमें से बहुत से एम्स आदि जैसे प्रसिद्ध सरकारी संस्थान