देवउठान एकादशी और महिला सम्मान
आज कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी अथवा देवोत्थान एकादशी पर्व में हम सभी के लिए एक विशेष संदेश भी है। हमारे देश और हमारी संस्कृति में महिला का स्थान और सम्मान सदैव सर्वोच्च में माना गया है।कहा भी गया है कि, “यत्र नार्यस्तु पूज्यते,रमन्ते तत्र देवता।” हमारी संस्कृति में सदैव से प्रेम और विवाह के संबंधों में स्त्री की मर्जी सर्वोपरि थी और इसका उदाहरण रामायण काल,महाभारत काल और पृथ्वीराज संयोगिता वाले स्वयंवरों की कथाएं हैं। यदि कभी भी किसी ने स्त्री की इच्छा विरुद्ध अमर्यादित आचरण का प्रयास किया तो उसको दंड भी मिला है जिसके उदाहरण देवराज इंद्र (गौतम ऋषि-अहिल्या की कथा),कीचक, बाली और रावण के भी हैं। आज देवोत्थान अथवा देव उठान एकादशी के दिन तुलसी विवाह का उत्सव होता है।ये भी उपरोक्त का ही एक बहुत ही सबल उदाहरण है।इस कथा में दानव जालंधर का हनन करने हेतु देवों के आग्रहवश स्वयं भगवान विष्णु ने वृंदा से छल किया और छल की बात खुलने पर वृंदा से श्राप ग्रसित हो पत्थर बने और फिर श्राप मुक्त भी वृंदा द्वारा किये गए और फिर वृंदा सती हुयीं तो इस गलत घटना का अफसोस पूरे समाज को हुआ।उसके प्रायश