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Showing posts from January, 2023

ब्रज और आस-पास के क्षेत्र का खान-पान एवं व्यंजन

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ब्रज और आस-पास के क्षेत्र का खान-पान एवं व्यंजन आजकल यूट्यूब,टी वी चैनल्स,मैगज़ीन्स, समाचार पत्र सारी जगहों पर रेसिपीज और खाने पर काफी चर्चा और शो देखने-पढ़ने को मिलते हैं।इनके माध्यम से हमको विभिन्न देशों और खुद अपने देश के विभिन्न इलाकों के खाने के इतिहास,खाने की संस्कृति और खाने की चीज़ों के विषय में जानकारी मिलती है जो काफी अच्छी और रोचक भी होती है।अगर हम केवल अपने देश की बात करें तो कह सकते हैं कि जितना हमारे देश में विभिन्न इलाकों के मौसम, जलवायु और क्षेत्रीय संस्कृतियों में फर्क है उतना ही हर क्षेत्र के खाने में और जैसे इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हम सब एक हैं यानी कि भारतीय वैसे ही इतनी विभिन्नताओं के बाद भी हमारे सभी खानों का मूल स्वाद और भाव एक ही है यानी कि हिंदुस्तानी-विशुद्ध भारतीय! आज अपने इस लेख के द्वारा मैं चर्चा करना चाहूंगा एक क्षेत्र विशेष यानी "ब्रज क्षेत्र" और उसके आगे भी आस-पास के परंपरागत खान-पान की।इनमें से अधिकतर व्यंजन इस इलाके में अधिकांश लोगों के खान-पान का हिस्सा सदियों से रहे हैं और कुछ चतुर्वेदी समुदाय के विशेष रूप से। जब मीडिया या सोशल मीडिया में

दादाजी बनारसीदास चतुर्वेदी और प्रवासी भारतीय

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आज समाचारपत्रों में एक बार फिर से मध्यप्रदेश में हो रही प्रवासी भारतीय ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट को लेकर प्रवासी भारतीयों की चर्चा है। इस अवसर पर मैं याद करना चाहूँगा पदम भूषण दादा जी स्व0 बनारसी दास जी चतुर्वेदी को जिन्होंने प्रवासी भारतीयों के हित चिंतन को बहुत काम किया और महात्मा गांधी जी के कहने पर फीजी आदि देशों की यात्रा भी प्रवासी भारतीयों की उस समय की दुर्दशा देखने को की। दादा जी ने फर्रुखाबाद में अपने अध्यापन काल में ही तोताराम सनाढ्य के लिए उनके संस्मरणों की पुस्तक 'फिज़ी द्वीप में मेरे 21 वर्ष' लिखी थी। 'फिज़ी द्वीप में मेरे 21 वर्ष' के संस्मरणों में उस द्वीप पर अत्यंत दारुण परिस्थितियों में काम करने वाले भारत के प्रवासी गिरमिटिया मजजदूरों की त्रासदी का बड़ा ही संवेदनाप्रवण चित्रण था। बाद में चतुर्वेदी जी ने सीएफ एंड्रयूज़ की माध्यम से इन मजदूरों की दुर्दशा का अंत सुनिश्चित करने के लिए बहुविध प्रयत्न किए।यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि उस जमाने में विदेश में बसे भारतीय लोगों के हालात बहुत खराब थे और वो अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत रहने को मजबूर थे।ये वर्तमा